मेरी तेरी जब से कुछ पहचान है,
मुश्किलों में तब से मेरी जान है।
प्यार का इज़हार करना चाहूं पर,
डर का चाबुक सांसों का दरबान है।
इश्क़ में दरवेशी का कासा धरे,
बेसबब चलने का वरदान है।
जब से तेरै ज़ुल्फ़ों की खम देखी है,
तब से सांसत मे मेरा ईमान है।
मत झुकाओ नीमकश आखों को और,
और कुछ दिन जीने का अरमान है।
ज़िन्दगी भर ईद की ईदी तुझे,
मेरे हक़ में उम्र भर रमजान है।
सब्र की पगडदियां मेरे लिये,
तू हवस के खेल की मैदान है।
मेरे दिल के कमरे अक्सर रोते हैं,
तू वफ़ा की छत से क्यूं अन्जान है।
तेरे बिन जीना सज़ा से कम नहीं,
मरना भी दानी कहां आसान है।
जब से तेरे जुल्फों की ख़म देखी है
ReplyDeleteतब से सांसत में मेरा ईमान है
................प्यारा शेर
............उम्दा ग़ज़ल
धन्यवाद सुरेन्द्र भाई।
ReplyDeleteमत झुकाओ नीमकश आखों को और,
ReplyDeleteऔर कुछ दिन जीने का अरमान है।
गज़ब अंदाज़ है इस शेर का।
क्या बात है, जवाब नहीं।
शुक्रिया महेन्द्र जी
ReplyDelete