हो गई है दोस्ती मुश्किलों से,
बढ रही हैं दूरियां मन्ज़िलों से।
तेरे दर पे मरने आया हूं हमदम,
वार तो कर आंखों की खिड़कियों से।
बीबी के आगे नहीं चलती कुछ, गो
सरहदों पे लड़ चुका सैकड़ों से।
सोते सोते जाग जाता हूं अक्सर,
लगता है डर ख़्वाबों की वादियों से।
इश्क़ की रातें चरागों सी गुमसुम,
हुस्न का टाकां भिड़ा आंधियों से।
दिल के गुल को मंदिरों से है नफ़रत,
वो लिपटना चाहे तेरी लटों से।
दिल के छत पर तेरे वादों का तूफ़ां,
जो भड़कता हिज्र के बादलों से।
गर सियासत के बियाबां में जाओ,
बच के रहना जंगली भेड़ियों से।
जीतना है गर समन्दर को दानी,
फ़ेंक दो पतवारों को कश्तियों से।
गर सियासत के बियाबां में जाओ,
ReplyDeleteबच के रहना जंगली भेड़ियों से।
बेचारे बाबा रामदेव तो फंस ही गए ...
खूबसूरत गज़ल
संगीता स्वरूप जी आपका आभार।
ReplyDelete'जीतना है गर समंदर को दानी
ReplyDeleteफेंक दो पतवारों को कश्तियों से '
....................जानदार शेर
उम्दा ग़ज़ल ,हर शेर अर्थपूर्ण
Thanks Surendra Bhai
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