सुख का दरवाज़ा खुला है,
ग़म प्रतिक्षा कर रहा है।
सूर्ख हैं फूलों के चेहरे,
रंग काटों का हरा है।
रात की बाहों मेंअब तक,
दिन का सूरज सो रहा है।
जीतना है झूठ को गर,
सच से रिश्ता क्यूं रखा है।
इश्क़ के जंगल में फिर इक,
दिल का राही फंस चुका है।
बन्दगी उनकी हवस की,
सब्र क्यूं मेरा ख़ुदा है।
जब सियासत बहरों की ,क्यूं
तोपों का माथा चढा है।
बच्चों की ख़ुशियों के खातिर,
बाप को मरना पड़ा है।
इश्क़ के सीने पे अब भी,
हुस्न का जूता रखा है।
मुल्क में पैसा तो है पर,
हिर्स का ताला लगा है। ( हिर्स-- लालच)
ज़ुल्म के दरिया से दानी,
दीन का साहिल बड़ा है।
रात की बाहों में अब तक,
ReplyDeleteदिन का सूरज सो रहा है।
बहुत ख़ूबसूरत शेर है यह।
ग़ज़ल के सभी शेर प्रभावित करते हैं।
धन्यवाद ,महेन्द्र भाई। कभी दुर्ग आते हों तो मिलयेगा दुर्ग बस स्तेन्ड के सामने सौभाग्य कांप्लेक्स मे मेरी क्लिनिक है।
ReplyDelete'बच्चों की खुशियों के खातिर
ReplyDeleteबाप को मरना पड़ा है '
................वाह , दिल को छूता शेर
.................उम्दा ग़ज़ल, हर शेर अर्थपूर्ण