दर्द के दरिया से दिल की उलफ़त हुई
यादों की कश्तियों में, तबीयत चली।
बेबसी के सफ़र का मुसाफ़िर हूं मैं,
हुस्न के कारवां की इनायत यही।
मैं ज़मानत चरागों की लेता रहा,
आंधियों की अदालत ने तेरी सुनी।
दिल, ग़मों के कहानी का किरदार है,
हुस्न के मंच पर मेरी मैय्यत सजी।
है मदद की छतों पर मेरी सल्तनत,
तू ज़मीने-सितम की रियासत रही।
अपने घर में जहन्नुम भुगतता रहा,
सरहदे-इश्क़ में मुझे ज़न्नत मिली।
बदज़नी से मेरा रिश्ता बरसों रहा,
तेरी गलियों में सर पे शराफ़त चढी ।
मैं किताबे-वफ़ा का ग़ुनहगार हूं,
बेवफ़ाई तुम्हारी शरीयत बनी।
प्यार की कश्ती सागर की जानिब चली,
तेरे वादों के साहिल की दहशत बड़ी।
दिल ये, दानी का मजबूत था हमनशीं,
जब से तुमसे मिला हूं नज़ाकत बढी।
गूढ़ भावनाओं को सटीक शब्दों में अभिव्यक्त करती अत्यंत सुंदर ग़ज़ल।
ReplyDeleteमुझे यह शे‘र सबसे बेहतरीन लगा-
मैं ज़मानत चरागों की लेता रहा,
आंधियों की अदालत ने तेरी सुनी।
...शुभकामनाएं, डॉ.साहब।
भावनाओं को क्या खूब लिखा है...!
ReplyDeleteसादर!
महेन्द्र वर्मा जी और अनुपमा जी का शत शत आभार ।
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