सोच के दीप जला कर देखो,
ज़ुल्म का मुल्क ढ्हा कर देखो।
दिल के दर पे फ़िसलन है गर,
हिर्स की काई हटा कर देखो।
साहिल पे सुकूं से रहना गर,
लहरों को अपना कर देखो।
ग़म के बादल जब भी छायें,
सब्र का जाम उठा कर देखो।
ईमान ख़ुदाई नेमत है,
हक़ पर जान लुटा कर देखो।
डर का कस्त्र ढहाना है गर,
माथ पे ख़ून लगा कर देखो।
आग मुहब्बत की ना बुझती,
हीर की कब्र खुदा कर देखो।
वस्ल का शीश कभी न झुकेगा,
हिज्र को ईश बना कर देखो।
डोर मदद की हर घर में है,
हाथों को फैला कर देखो।
हुस्न का दंभ घटेगा दानी,
इश्क़ का फ़र्ज़ निभा कर देखो।
साहिल पे सुकूं से रहना गर,
ReplyDeleteलहरों को अपना कर देखो।
डर का कस्त्र ढहाना है गर,
माथ पे ख़ून लगा कर देखो।
वस्ल का शीश कभी न झुकेगा,
हिज्र को ईश बना कर देखो।
वाह वाह वाह............. जबर्दस्त
सोच के दीप जला कर देखो,
ReplyDeleteज़ुल्म का मुल्क ढ्हा कर देखो।
वाह, बहुत खूब, बहुत शानदार ग़ज़ल...