ग़मों का ज़िन्दगी भर जो हिसाब रखता है,
उसे कभी न खुशी का सवाब मिलता है।
कटाना पड़ता है सर जान देनी पड़ती है,
किसी वतन में तभी इन्क़लाब आता है।
चराग़ों से तुम्हें गर मिलता है उजाला तो,
ज़लील चांदनी की क्यूं किताब पढता है।
उसे अजीज़ है गो बेवफ़ाई का बिस्तर ,
मगर पास वफ़ा का वो नक़ाब रखता है।
सिपाही,जान लुटाकर संवारते सरहद,
सियासी चाल से मौसम ख़राब होता है।
अंधेरों की भी ज़रूरत है सबको जीवन में,
हरेक दर्द कहां आफ़ताब हरता है।
शराब की क्या औक़ात, साक़ी की अदा से,
शराबियों को नशा-ए-शराब चढता है।
हवस के बिस्तर में रोज़ सोती है वो, सब्र
का मेरे दिल के बियाबां में ख़्वाब पलता है।
जो हार कर भी निरंतर प्रयास करता रहे,
वो दुनिया में सदा कामयाब होता है।
अगर तू इश्क़ समंदर से करता है दानी,
तो रोज़ साहिलों को क्यूं हिसाब देता है।
चराग़ों से तुम्हें गर मिलता है उजाला तो,
ReplyDeleteज़लील चांदनी की क्यूं किताब पढता है।
एक बेहतरीन ग़ज़ल का बेहतरीन शे‘र है यह।
Lot of thanks Mahendra Varma ji.
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