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Sunday 24 April 2011

ज़िन्दगी यारो नदी है।

तुमको इज़्ज़त की पड़ी है,
मेरी दुनिया लुट रही है।

बेवफ़ाई की गली भी,
हां ख़ुदा द्वारा बनी है।

इश्क़ नेक़ी का मुसाफ़िर,
हुस्न धोखे की गली है।

हम चराग़ों के सिपाही,
आंधियों से दुश्मनी है।

चाह कर भी रुक न सकते,
ज़िन्दगी यारो नदी है।

क्यूं किनारों पर सड़ें जब,
लहरों की दीवानगी है।

तीरगी के इस सफ़र में, (तीरगी - अंधेरों)
जुगनुओं से दोस्ती है।

मेरी दरवेशी पे मत हंस,
अब यही मेरी ख़ुदी है। (ख़ुदी -स्वाभिमान)

चांद के जाते ही दानी,
चांदनी बिकने खड़ी है।

2 comments:

  1. nice ghazal.....shaire dani men bhi pahle pdhi hai.

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  2. धन्यवाद वर्षा जी , मैं एक ही ग़ज़ल को अपने 3ब्लागों में एक साथ ही डालता हूं, अलग अलग लोग अलग अलग ब्लाग में पधारते हैं।

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