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Sunday, 3 April 2011

ग़म के बादल

ख़ुशियों का सूर्य गायब है घर से,
छाये हैं ग़म के बादल उपर से।

आज ख़ुद रात घबराई सी है,
चांदनी भी ख़फ़ा है क़मर से।

दुनिया समझे शराबी मुझे,जब
से मिली आंख़ें तेरी नज़र से।

हार ही जीत की पहली सीढी है,
रुकते हो क्यूं पराजय के डर से।

इस महक को मैं पहचानता हूं,
बेवफ़ा गुज़री होगी इधर से।

रातें कट जाती हैं जैसे तैसे,
डरती हैं मेरी सांसें सहर से।

रोज़ वो किस गली गुल खिलाती,
कुछ पता तो करो रहगुज़र से।

दूर रख दिल पहाड़ों से,बचना
भी कठिन गर गिरोगे शिखर से।

ईद का चांद जब तक दिखे ना
मैं हटूंगा नही दानी दर से।

2 comments:

  1. रातें कट जाती हैं जैसे तैसे,
    डरती हैं मेरी सांसें सहर से।

    ग़ज़ल के शेरों में विविध रंग हैं,
    शोख़ी भी है, शरारत भी,
    हक़ीकत भी है, कयामत भी।

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  2. हार ही जीत की पहली सीढ़ी है
    रुकते हो क्यूँ पराजय के भय से
    *************************
    बेहतरीन शेर .....सुन्दर ग़ज़ल

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