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Sunday 6 February 2011

पतंगों की जवानी

तू मेरे सूर्ख गुलशन को हरा कर दे ,
ज़मीं से आसमां का फ़ासला कर दे।

हवाओं के सितम से कौन डरता है ,
मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।

या बचपन की मुहब्बत का सिला दे कुछ,
या इस दिल के फ़लक को कुछ बड़ा कर दे।

तसव्वुर में न आने का तू वादा कर ,
मेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।

पतंगे की जवानी पे रहम खा कुछ ,
तपिश को अपने मद्धम ज़रा कर दे ।

हराना है मुझे भी अब सिकन्दर को ,
तू पौरष सी शराफ़त कुछ अता कर दे।

मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा ,
मुझे जो भी दे बस जलवा दिखा कर दे ।

तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब ,
मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।

शहादत पे सियासत हो वतन मे तो ,
शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।

यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को ,
यहीं तामीर काशी करबला कर दे।

भटकना गलियों में मुझको नहीं आता,
दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।


अता- देना ,लहद-क़ब्र, तसव्वुर-कल्पना ,फ़लक-गगन।, ज़िया-रौशनी

4 comments:

  1. तसव्वुर में न आने का तू वादा कर
    मेरी तन्हाई के हक में तू फैसला कर दे
    बहुत सुन्दर शेर ...उम्दा ग़ज़ल

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  2. हवाओं के सितम से कौन डरता है ,
    मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।

    बहुत बढ़िया शेर,
    इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए आभार।

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  3. खूबसूरत शेर ......
    खूबसूरत ग़ज़ल.......
    बहुत खूब.

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  4. ऽअदरणीय सुरेन्द्र जी , आदरणीय महेन्द्र जी व आदरणीया वर्षा जी का आभार।

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