तू मेरे सूर्ख गुलशन को हरा कर दे ,
ज़मीं से आसमां का फ़ासला कर दे।
हवाओं के सितम से कौन डरता है ,
मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन की मुहब्बत का सिला दे कुछ,
या इस दिल के फ़लक को कुछ बड़ा कर दे।
तसव्वुर में न आने का तू वादा कर ,
मेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।
पतंगे की जवानी पे रहम खा कुछ ,
तपिश को अपने मद्धम ज़रा कर दे ।
हराना है मुझे भी अब सिकन्दर को ,
तू पौरष सी शराफ़त कुछ अता कर दे।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा ,
मुझे जो भी दे बस जलवा दिखा कर दे ।
तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब ,
मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।
शहादत पे सियासत हो वतन मे तो ,
शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को ,
यहीं तामीर काशी करबला कर दे।
भटकना गलियों में मुझको नहीं आता,
दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।
अता- देना ,लहद-क़ब्र, तसव्वुर-कल्पना ,फ़लक-गगन।, ज़िया-रौशनी
तसव्वुर में न आने का तू वादा कर
ReplyDeleteमेरी तन्हाई के हक में तू फैसला कर दे
बहुत सुन्दर शेर ...उम्दा ग़ज़ल
हवाओं के सितम से कौन डरता है ,
ReplyDeleteमेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
बहुत बढ़िया शेर,
इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए आभार।
खूबसूरत शेर ......
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल.......
बहुत खूब.
ऽअदरणीय सुरेन्द्र जी , आदरणीय महेन्द्र जी व आदरणीया वर्षा जी का आभार।
ReplyDelete