शौक के बादल घने हैं
दिल के ज़र्रे अनमने हैं।
दीन का तालाब उथला
ज़ुल्म के दरिया चढ़े हैं।
अब मुहब्बत की गली में
घर,हवस के बन रहे हैं।
मुल्क ख़तरों से घिरा है
क़ौमी छाते तन चुके हैं।
बेवफ़ाई खेल उनका
हम वफ़ा के झुनझुने हैं।
ख़ौफ़ बारिश का किसे हो
शहर वाले बेवड़े हैं।
चार बातें क्या की उनसे
लोग क्या क्या सोचते हैं।
हम ग़रीबों की नदी हैं
वे अमीरों के घड़े हैं।
लहरों पे सुख की ज़ीनत
ग़म किनारों पे खड़े हैं।
रोल जग में" दानी" का क्या
वंश का रथ खींचते हैं।
चार बातें क्या की उनसे
ReplyDeleteलोग क्या क्या सोचते हैं।
छोटी बहर की शानदार ग़ज़ल।
सभी शे‘र लाजवाब हैं।
बधाई डॉ. साहब।
महोदय,
ReplyDeleteइसकी क्या तारीफ़ करुँ,
कम है जितना भी कहूं.
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शुभकामनाएं. शुक्रिया. जारी रहें.
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कुछ ग़मों के दीये
ग़ज़ल अच्छी है। बधाई!
ReplyDeleteमहेन्द्र वर्मा जी , अमीत सागर जी और वर्षा जी का शत शत आभार।
ReplyDeleteछोटी बहर की लाजवाब ग़ज़ल
ReplyDeleteबधाई!
thanks sunil ji
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