महफ़िलें भी आज बेहद तन्हा हैं
बज़्मे दिल में बेरुख़ी का पर्दा है।
जो समंदर सा दिखे किरदार से
वो किनारों की ग़ुलामी करता है।
इश्क़ का घर सब्र से मजबूत है
हुस्न की छत पे हवस का सरिया है।
नेक़ी मौक़ों की नज़ाकत पर टिकी
चोरी करना सबको अच्छा लगता है।
मन की दीवारें सुराख़ो से भरीं
जिसके अंदर हिर्स का जल बहता है।
ज़िन्दगी को हम ही उलझाते रहे
आदमी जीते जी हर पल मरता है।
अब मदद की सीढियों सूखी हैं पर
शौक के घर बेख़ुदी का दरिया है।
हां रसोई ,रिश्तों की बेस्वाद है
देख कर कद, दूध शक्कर बंटता है।
दानी का दिल है चराग़ों पर फ़िदा
आंधियों से अब कहां वो डरता है।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|
ReplyDeletebahut hi achchha likha hai. satat blog lekhan ke liye shubkamnayen.
ReplyDeleteनेक़ी मौक़ों की नज़ाकत पर टिकी
ReplyDeleteचोरी करना सबको अच्छा लगता है।
अच्छा शेर
मिश्रा जी ,सुरेन्द्र जी, वीना जी, आनंद जी, चेतना के स्व्रर,पटाली -द- विलेज आप सबको मेरा सलाम और शुक्रिया आपके पधारने के लिये और हौसला अफ़ज़ाई के लिये। गाहे-ब-गाहे यूं ही आपकी दीद का मैं तलबगार हूं।
ReplyDeleteसंगीता पुरी जी का शुक्रिया उनके सकरात्मक कमेन्ट के लिये।
ReplyDeleteआलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
ReplyDeleteके आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!"
का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
पूरा पढ़ने के लिए :-
http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html
भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
ReplyDeleteकी तरफ से आप, आपके परिवार तथा इष्टमित्रो को होली की हार्दिक शुभकामना. यह मंच आपका स्वागत करता है, आप अवश्य पधारें, यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "फालोवर" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . आपकी प्रतीक्षा में ....
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