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Sunday 14 November 2010

जागे से अरमान

जागे से दिल के अरमान हैं
इश्क़ का सर पे सामान है।

कुछ दिखाई नहीं देता अब
सोच की गलियां सुनसान हैं।

दुश्मनी हो गई नींद से
आंखों के पट परेशान हैं।

मेरी तनहाई की तू ख़ुदा
महफ़िले ग़म की तू जान है।

काम में मन नहीं लगता कुछ
बेबसी ही निगहबान है।

मुझको दरवेशी का धन दिया
तू फ़कीरों की भगवान है।

दर हवस के खुले रह गये
बंद तहज़ीब की खान है।

सब्र मेरा चराग़ों सा है
वो हवस की ही तूफ़ान है।

ज़र ज़मीं जाह क्या चीज़ है
प्यार में जान कुरबान है।

दिल की छत पे वो फ़िर बैठी है
मन का मंदिर बियाबान है।

दानी को बेवफ़ाई अजीज़
इल्म ये सबसे आसान है।

3 comments:

  1. दुश्मनी हो गई नींद से
    आंखों के पट परेशान हैं।

    मेरी तनहाई की तू ख़ुदा
    महफ़िले ग़म की तू जान है।

    बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल
    बधाई, डॉ. साहब।

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  2. आपके अंदर एक बेहतरीन शायर मौजूद है दानी जी,यूँ ही लिखते रहें,मगर अच्छे लोगों के कलाम पढ़ते भी रहीं,क़लम बेहतर होती जायेगी.

    कुँवर कुसुमेश
    ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com

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  3. महेन्द्र वर्मा जी और कुंवर साहब को सलाम और शुक्रिया।

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