दिल के दीवारों की, आशिक़ को नसीहत,
इश्क़ के सीमेन्ट से ढ्ह जाये ना छत।
रेत भी गमगीं नदी का हो तो अच्छा,
सुख का दरिया करता है अक्सर बग़ावत।
सब्र का सरिया बिछाना दिल के छत पे,
छड़, हवस की कर न पायेगी हिफ़ाज़त
प्लास्टर विश्वास के रज का लगा हो,
खिड़कियों के हुस्न से टपके शराफ़त।
सारे दरवाज़े,मिजाज़ो से हों नाज़ुक,
कुर्सियों के बेतों से झलके नफ़ासत।
कमरों में ताला सुकूं का ही जड़ा हो,
फ़र्श लिखता हो मदद की ही इबारत।
दोस्ती की धूप हो,आंगन के लब पे,
गली में महफ़ूज़ हो चश्मे-मुहब्बत।
सीढियों की धोखेबाज़ी, बे-फ़लक हो,
दीन के रंगों से खिलती हो इमारत।
मेहनत का हो धुंआ दानी किचन में,
रोटियों की जंग में, टूटे न वहदत। वहदत-- एकता।
सुख का दरिया करता है अक्सर बग़ावत।
ReplyDeleteछड़, हवस की कर न पायेगी हिफ़ाज़त
प्लास्टर विश्वास के रज का लगा हो,
कमरों में ताला सुकूं का ही जड़ा हो,
गल्ली में महफ़ूज़ हो चश्मे-मुहब्बत।
मेहनतों का हो धुंआ दानी किचन में,
वाह वाह.......... ये भी क्या खूब प्रस्तुति है सर जी| बहुत खूब| बहुत खूब| वाह वाह|