दिल के घर में हर तरफ़ दीवार है,
जो अहम के कीलों से गुलज़ार है।
तौल कर रिश्ते निभाये जाते यहां,
घर के कोने कोने में बाज़ार है।
अब सुकूं की कश्तियां मिलती नहीं,
बस हवस की बाहों में पतवार है।
ख़ून से लबरेज़ है आंगन का मन,
जंगे-सरहद घर में गो साकार है।
थम चुके विश्वास के पखें यहां,
धोखेबाज़ी आंखों का ष्रिंगार है।
ज़ुल्म के तूफ़ानों से कमरा भरा,
सिसकियां ही ख़ुशियों का आधार है।
हंस रहा है लालची बैठका का फ़र्श,
कुर्सियों की सोच में हथियार है।
मुल्क का फ़ानूस गिरने वाला है,
हां सियासत की फ़िज़ा गद्दार है।
सर के बालों की चमक बढने लगी,
पेट की थाली में भ्रष्टाचार है।
न्याय की छत की छड़ें जर्जर हुईं,
चंद सिक्कों पे टिका संसार है।
टूटी हैं दानी मदद की खिड़कियां,
दरे-दिल को आंसुओं से प्यार है।
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