मुहब्बत तेरी मेरी कहानी के सिवा क्या है,
विरह के धूप में तपती जवानी के सिवा क्या है।
तुम्हारी दीद की उम्मीद में बैठा हूं तेरे दर,
तुम्हारे झूठे वादों की गुलामी के सिवा क्या है।
समन्दर ने किनारों की ज़मानत बेवजह ली,ये,
इबादत-ए-बला आसमानी के सिवा क्या है।
तेरी ज़ुल्फ़ों के गुलशन में गुले-दिल सुर्ख हो जाता,
तेरे मन में सितम की बाग़वानी के सिवा क्या है।
पतंगे-दिल को कोई थामने वाला मिले ना तो,
थकी हारी हवाओं की रवानी के सिवा क्या है।
न इतराओ ज़मीने ज़िन्दगी की इस बुलन्दी पर,
हक़ीक़त में तेरी फ़स्लें ,लगानी के सिवा क्या है।
शिकम का तर्क देकर बैठा है परदेश में हमदम,
विदेशों में हवस की पासबानी के सिवा क्या है।
ग़रीबों के सिसकते आंसुओं का मोल दानी अब,
अमीरों के लिय आंखों के पानी के सिवा क्याहै।
ग़रीबों के सिसकते आंसुओं का मोल दानी अब,
ReplyDeleteअमीरों के लिय आंखों के पानी के सिवा क्याहै।
पुरी गज़ल ही बहुत खूबसूरत ..
शुक्रिया संगीता स्वरूप ( गीत) जी।
ReplyDeleteग़रीबों के सिसकते आंसुओं का मोल दानी अब,
ReplyDeleteअमीरों के लिय आंखों के पानी के सिवा क्याहै।
sunder sher .puri gazal ke bhav bahut achchhe hain
rachana
शुक्रिया रचना जी।
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