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Monday 30 May 2011

मेरी तन्हाई

मुझसे तन्हाई मेरी ये पूछती है,
बेवफ़ाओं से तेरी क्यूं दोस्ती है।

चल पड़ा हूं मुहब्बत के सफ़र में,
पैरों पर छाले रगों में बेख़ुदी है।

पानी के व्यापार में पैसा बहुत है,
अब तराजू की गिरह में हर नदी है।

एक तारा टूटा है आसमां पर,
शौक़ की धरती सुकूं से सो रही है।

बिल्डरों के द्वारा संवरेगा नगर अब,
सुन ये, पेड़ों के मुहल्ले में ग़मी है।

अब अंधेरों का मुसाफ़िर चांद भी है,
चांदनी के ज़ुल्फ़ों की आवारगी है।

अब खिलौनों वास्ते बच्चा न रोता,
टीवी के दम से जवानी चढ गई है।

दिल की कश्ती को किनारों ने डुबाया,
इसलिये मंझधार को से मिलने चली है।

मत लगाना हुस्न पर इल्ज़ाम दानी,
ऐसे केसों में गवाहों की कमी है।

Monday 23 May 2011

रात तेरे वादों पर कुर्बान है।

ये रात तेरे वादों पर कुर्बान है,
अब ख़्वाबों का चौपाल भी सुनसान है।

ग़म दर्द से लबरेज़ मेरे दिल का दर,
सर पर वफ़ा का भारी सा सामान है।

पैरों पे छाले पड़ चुके हैं इश्क़ के,
पर हुस्न का दिल दर्द से अन्जान है।

दोनों मुसाफ़िर हैं सफ़र-ए-इश्क़ के,
पर मंज़िलों से उनकी ही पहचान है।

दिल का समन्दर क्यूं किनारों पर फ़िदा,
ये कश्ती-ए-मज़रूह का अपमान है।

मेरी किताबों में तेरे अल्फ़ाज़ हैं,
मेरी कलम का हौसला ज़िन्दान है ।( ज़िन्दान - क़ैद)

इस गांव के बाशिन्दे पर खाओ तरस,
तू बे-नियाज़े शह्र की सुल्तान है।

मैं क़ब्र में भी राह तेरी देखूंगा'
मरती हुई सांसों का ऐलान है।

ये इश्क़ भी दानी अंधेरों की गली,
मुश्किल निकलना,घुसना गो आसान है।
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